दोस्तों डर एक ऐसा हथियार है जो किसी भी इंसान की बुद्धि को नष्ट कर देता है
आज मैं आपको एक ऐसी ही कहानी बताने जा रही हूँ
बहुत साल पहले की बात है मैं अपने गांव छुटियाँ काटने गयी हम बहुत मस्ती करते थे लेकिन कुछ समय बाद जब रात को सब सो जाते थे तब किसी के पायल की आवाज आती थी और सुबह रस्ते पर फुल और पानी गिरा होता था
सब लोग डर गए !
अब रोज रात ऐसा होने लगा पायल की आवाज आती थी सुबह पानी और फूल पड़े होते थे मेरी मौसी ने मुझे बाहर जाने से मनाह कर दिया और बाकि लोग भी रात के समय बहार जाना बंद हो गए लेकिन किसी की भी इतनी हिमत न हुई के एक बात देखे तो कौन है जो इस तरह रात को पानी और फूल गिरता है
यह बात पंचायत तक पहुँच गयी और सबने मिल कर फैसला लिया के चोकीदार रात को देखे के आखिर कौन है जो इस तरह से सारे गांव को परेशान कर रहा है
और बाकि गांव के लोग भी चौकना रहे अगर कुछ होता है तो सब इकठा हो जाये
रात होने को थी सब डर रहे थे के आखिर क्या होगा ? सब से ज्यादा डर चोकीदार को था क्योकि उसकी ये जिम्मेदारी थी के वो रात को नजर रखे के आखिर कौन है वो ?
रात के 2 बजे एक औरत साड़ी पहने घूंघट ओढे, सिर पर मटकी और साथ में एक थैली जिसमे फूल थे चोकीदार दूर से देख रहा था जैसे ही चोकीदार निकला वो औरत भाग गयी चोकीदार ने शोर मचा दिया
लोग तो जाग ही रहे थे सब इकठा हो गए | अगली सुबह सब बातें करने लगे सब ये सोच रहे थे क अगर वो कोई आत्मा या पिशाच होता तो वो इस तरह से न भागता लोगो ने मिल कर उस औरत को पकड़ने का फैसला किया
अगली रात सब तैयार थे सब गांव वाले जगह जगह छुप गए रात 2 बजे सब चोकने हो गए तभी वो औरत आई सबने मिल कर उसे घेर लिया सबने उसको पूछा ” कौन हो तुम “?
औरत कुछ न बोली
लोगो ने बोला “अगर न बोली तो हम लाठियों से मारेंगे “
औरत ने इतने सारे लोग देख कर अपना घूंघट उठा दिया और बोली
“मेरा नाम सुमन है मैं पास के गांव में रहती हूँ “
लोगो ने पूछा -” ये सब क्या कर रही हो और वो भी हमारे गांव आ कर “
औरत बोली – ” मेरी कोई संतान नहीं है मुझे एक बाबा ने बोला के रात को मटकी में पानी ले कर और फूल से रेट पर चलना और चौरस्ते पर जा कर वो मटकी फोड़ देना , तो मैं बस बाबा के कहने पर कर रही थी “
उस रात लोगो की साँस में साँस आई और लोगो ने उस औरत को दूसरे गांव की पंचायत के हाथ दे दिया
तो दोस्तों ये थी एक ऐसी आपबीती जिसने पहली बार डर का सामना करना सिखाया और ये भी समझाया अन्धविश्वास में न पड़े
धन्यवाद्