मेरा नाम सतीश गोयल है मैं एक सरकारी मुलाजिम हूँ | कहते है सरकारी मुलाजिम कुछ काम नहीं करते उन्हें बस मुफ्त का खाने की आदत होती है पर ऐसा नहीं है | एक सरकारी मुलाजिम के ऊपर उच्च स्तर कार्यकर्ता का और सरकार का बहुत बड़ा प्रभाव होता है | ऐसा ही मेरे जीवन का एक किस्सा मै आपको बताना चाहता हूँ |
मेरे बेटे की 12 वीं की परीक्षा में अव्वल नम्बर लाने के बाद अब मेरे बेटे का कॉलेज में दाखिला कराने का समय आ चुका था | मुझे पता था की वह बहुत होनहार है और उसे कॉलेज में आराम से मेडिकल की सीट मिल जाएगी | पर मुझे क्या पता था की सरकारी उच्च स्तर पर बैठा कोई और अधिकारी का बेटा मेरे बेटे की सीट ले जायेगा| जब की उसकी काबिलियत और 12 वीं की परीक्षा में नंबर भी मेरे बेटे से कही कम थे | मेरे बेटे का मेडिकल में नम्बर उस उच्च स्तर अधिकारी के बेटे की वजह से नहीं आया | सच सरकारी दबदबा तो उच्च स्तर वालों का होता है जिनके बच्चे ना काबिल होते है और ना ही होशियार | उन्हें बस पकी पकाई खिचड़ी खाने के लिए मिल जाती है | पहले हमें यह सिस्टम अच्छा लगता था पर जब अपने पे बीती तो समझ आया यह गलत है।
सिफारिश से जब तक अपना काम बनता है तब तक ठीक लगता है जब अपना काम नहीं होता तो एहसास होता है।