ये कहानी उस समय की है जब मैं और मेरी ज़िन्दगी (आयुष) दोनों हिमाचल की पहाड़ियों की सैर करने निकले, मगर उस समय ये हम दोनों में से किसी ने नहीं सोचा था (कुछ ऐसा जो कभी सोचा न था) की मौज मस्ती करने निकले दो प्रेमी इस कदर पास जायेंगे के दोबारा कभी एक दुसरे को देख भी नहीं पाएंगे या फिर यूँ कहो देखना ही नहीं चाहेंगे!!
नेहा: आयुष देखो न कितना सुहाना मौसम है, मेरा कही दूर पहाड़ियों में घूमने का मन है। चलो न कहीं दूर पर्वतों में चलते हैं, जहाँ कोई तुम्हे मुझसे दूर न लेजा सके, जहाँ सिर्फ तुम और मई अकेले हों और नीला सा आसमान, चारो और हरी हरियाली और बस हम दोनों का प्यार।
आयुष: ठीक है बाबा अब बोलना बंद करो और जाकर अपना सामान पैक करो, आज तुम्हारी यह ईशा भी हम पूरी करते है।
आयुष और नेहा दोनों ज़हमते हुए दूर पहाड़ियों में निकल जाते हैं। दोनों बहुत खुश और चेहेक्ते-महकते अपनी ही धून में लगे होते हैं। लेकिन शायद उनकी किस्मत को कुश और ही मंज़ूर था और किसी से उनकी ये ख़ुशी देखि ही नहीं जाती और उनकी फूल जैसी ज़िन्दगी बिखर कर रह जाती है। सफर चल तो सुहाना रहा था, दोनों मुस्क़ुएरते हुए अपनी ही धुन में चले जा रहे थे। चलते -चलते रस्ते में अचानक तूफ़ान आना शुरू हो गया और ज़ोरो की बारिश चलने लगी, बारिश में भीगे दो प्रेमी रहने के लिए कोई जगह तलाश कर रहे थे तभी उनकी नज़र अचानक एक हवेली पर पढ़ी। यु लाग रहा था के वो हवेली हमारे लिए ही बानी हो। एक रात तो हमारी हस्ते-हस्ते बीत गयी। अचानक आयुष ने सोचा हम यहाँ इतनी दूर आये हैं तो कही ओर रुकने की बजाये क्यों न हम यही इस हवेली में ही रुक जाएँ। एक तो ये हवेली पहाड़ों के बीच रस्ते में है, यहाँ का नज़ारा बहुत ही दिलचस्प है। दूसरी बात हमें कोई तो जगह ढूंढ़नी ही पड़ेगी जहाँ हम आराम कर सके। इस तरह हमने वहां रहने का सोच लिया। दिन में हम पहाड़ों की सैर करते और रात में उस हवेली में आ रुकते।
सब कुछ ठीक चाल रहा था। अचानक एक दिन बहुत तूफ़ान चला और आयुष को पता नहीं क्या हो गया। आयुष मेरी कोई भी बात न सुनता और अजीब तरीके सा पेश आने लगा। रात को वो पता नहीं नींद में चलते-चलते कहाँ पहुँच जाता। मैं बहुत परेशान रहने लगी। मुझे यूँ लग रहा था की ये मेरी ही गलती है जो आयुष आज इस तरह से मुँह मोड़ रहा है। अलग-अलग तरीकों से आयुष्मुझे सताने लगा। उसकी हरकतों से तंग आ कर एक दिन मैं हवेली के बहार बैठ रो रही थी, तभी वहां से एक बाबा गुजरे और उनहोंने मुझसे मेरा हाल पूछा, मैंने सभी बातें बताई। तब बाबा ने कहा बेटी ये कोई कला साया है जो तुम्हारे पति को पकड़ कर बैठा है। वो कला साया कोई और नहीं बल्कि आयुष पत्नी है। पिछले जनम में आयुष उस महल का राजा था उसकी पानी रानी। एक दर्दनाक दुर्घटना में दोनों की जान ले ली जिसमे आयुष की आत्मा को तो मुक्ति मिल गयी लेकिन सपना की आत्मा अभी तक आयुष का इंतज़ार कर रही थी और अब जाकर कई वर्षों के बाद उसका इंतज़ार ख़तम हुआ है। अब सपना इतनी आसानी से आयुष को छोड़ने वाली नहीं है।
बाबा की बातें सुनकर मैं हैरान रह गयी और सोचने लग पड़ी की अब मई अपने पति को कैसे बचाऊँगी। अगले ही दिन मैंने बाबा से इसका हल पूछा, बाबा ने कहा तुम ये ताबीज़ लो और अपने पति के गले में डाल्दो। परन्तु आयुष मेरी किसी भी बात को न सुनता और जान बुझ कर मुझे दर्द देता। लेकिन मैंने भी हार नहीं मानी और किसी तरह अपने पति को बचने के लिए घर में एक यज्ञ रखवाया ताकि सपना की आत्मा मेरे पति छोड़ कर कहीं दूर चली जाये। यज्ञ के दौरान हमने कुछ बुलाया और सपना की आत्मा को धमका फुसला कर एक बोतल में बंद कर दिया। इस तरह आयुष को मुक्ति मिल गयी और हम सुखी -सुखी अपने घर को लोट गए।
Sab pyr krne Vale aise nhi hote kuc bhut bhut khubsurt yade de jate lekin kismat k hatho majboor hokr ek dusre se alg hote h or trapte rhte h kuc ko bs hamri Khushi ka ahsas hota h or hamari Khushi k liy hme khud se dur kr dete h or sc me vo bhi Tut chuk hote h bilkul